गद्दीनशीन महन्त सन्त बाबा सुखदेव सिंह साहिब कल खैरथल में : गृह प्रवेश के अवसर पर गुरुजस गायन कर संगत को करेगें निहाल
गुरुबाणी फर्मान करती है : सूही महला १ घरु ३ ੴ सतिगुर प्रसादि ॥ आवहु सजणा हउ देखा दरसनु तेरा राम ॥ घरि आपनड़ै खड़ी तका मै मनि चाउ घनेरा राम ॥ मनि चाउ घनेरा सुणि प्रभ मेरा मै तेरा भरवासा ॥ दरसनु देखि भई निहकेवल जनम मरण दुखु नासा ॥ सगली जोति जाता तू सोई मिलिआ भाइ सुभाए ॥ नानक साजन कउ बलि जाईऐ साचि मिले घरि आए ॥१॥ (श्री गुरुग्रन्थ साहिब अंग : 765) अर्थात: मेरे प्रियतम-प्रभु! मेरे पास आओ, ताकेि मैं तेरे दर्शन कर लूं।मैं अपने हृदय-घर में खड़ी देखती रहती हूँ, तेरे दर्शन करने के लिए मेरे मन में बड़ा ही चाव है। हे मेरे प्रभु ! जरा सुनो, मन में बड़ा चाव है और मुझे तेरा ही भरोसा है। तेरे दर्शन करके मैं इच्छा-रहित हो गई हूँ और मेरे जन्म-मरण का दुख नाश हो गया है। सब जीवों में तेरी ही ज्योति है और मैंने जान लिया है कि वह ज्योति तू ही है। तू मुझे सहज-स्वभाव ही मिला है। हे नानक ! मैं अपने प्रभु पर बलिहारी जाती हूँ और वह सत्य नाम द्वारा मेरे हृदय-घर में आया है॥ १॥ गद्दीनशीन महन्त सन्त बाबा सुखदेव सिंह साहिब कल खैरथल में गृह प्रवेश के अवसर पर गुरुजस गायन कर संगत को करेगें निहाल खैरथल (अलवर)। सन्त