LABANA JAGRATI SANDESH AMRIT VELE DA HUKAMNAMA SRI DARBAR SAHIB AMRITSAR Ang 631, 06-11-2024

 LABANA JAGRATI SANDESH


 AMRIT VELE DA

 HUKAMNAMA 

SRI DARBAR SAHIB

 AMRITSAR 



Ang 631, 06-11-2024


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ਸੋਰਠਿ ਮਹਲਾ ੯ ॥ ਮਨ ਕੀ ਮਨ ਹੀ ਮਾਹਿ ਰਹੀ ॥ ਨਾ ਹਰਿ ਭਜੇ ਨ ਤੀਰਥ ਸੇਵੇ ਚੋਟੀ ਕਾਲਿ ਗਹੀ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ ਦਾਰਾ ਮੀਤ ਪੂਤ ਰਥ ਸੰਪਤਿ ਧਨ ਪੂਰਨ ਸਭ ਮਹੀ ॥ ਅਵਰ ਸਗਲ ਮਿਥਿਆ ਏ ਜਾਨਉ ਭਜਨੁ ਰਾਮੁ ਕੋ ਸਹੀ ॥੧॥ ਫਿਰਤ ਫਿਰਤ ਬਹੁਤੇ ਜੁਗ ਹਾਰਿਓ ਮਾਨਸ ਦੇਹ ਲਹੀ ॥ ਨਾਨਕ ਕਹਤ ਮਿਲਨ ਕੀ ਬਰੀਆ ਸਿਮਰਤ ਕਹਾ ਨਹੀ ॥੨॥੨॥



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ਅਰਥ:

 (ਹੇ ਭਾਈ! ਵੇਖੋ, ਮਾਇਆ ਧਾਰੀ ਦੀ ਮੰਦ-ਭਾਗਤਾ! ਉਸ ਦੇ) ਮਨ ਦੀ ਆਸ ਮਨ ਵਿਚ ਹੀ ਰਹਿ ਗਈ। ਨਾਹ ਉਸ ਨੇ ਪਰਮਾਤਮਾ ਦਾ ਭਜਨ ਕੀਤਾ, ਨਾਹ ਹੀ ਉਸ ਨੇ ਸੰਤ ਜਨਾਂ ਦੀ ਸੇਵਾ ਕੀਤੀ, ਤੇ, ਮੌਤ ਨੇ ਬੋਦੀ ਆ ਫੜੀ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ ਹੇ ਭਾਈ! ਇਸਤ੍ਰੀ, ਮਿੱਤਰ, ਪੁੱਤਰ, ਗੱਡੀਆਂ, ਮਾਲ-ਅਸਬਾਬ, ਧਨ-ਪਦਾਰਥ ਸਾਰੀ ਹੀ ਧਰਤੀ – ਇਹ ਸਭ ਕੁਝ ਨਾਸਵੰਤ ਸਮਝੋ। ਪਰਮਾਤਮਾ ਦਾ ਭਜਨ (ਹੀ) ਅਸਲ (ਸਾਥੀ) ਹੈ ॥੧॥ ਹੇ ਭਾਈ! ਕਈ ਜੁਗ (ਜੂਨਾਂ ਵਿਚ) ਭਟਕ ਭਟਕ ਕੇ ਤੂੰ ਥੱਕ ਗਿਆ ਸੀ। (ਹੁਣ) ਤੈਨੂੰ ਮਨੁੱਖਾ ਸਰੀਰ ਲੱਭਾ ਹੈ। ਨਾਨਕ ਜੀ ਆਖਦੇ ਹਨ – (ਹੇ ਭਾਈ! ਪਰਮਾਤਮਾ ਨੂੰ) ਮਿਲਣ ਦੀ ਇਹੀ ਵਾਰੀ ਹੈ, ਹੁਣ ਤੂੰ ਸਿਮਰਨ ਕਿਉਂ ਨਹੀਂ ਕਰਦਾ ? ॥੨॥੨॥



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सोरठि महला ९ ॥ मन की मन ही माहि रही ॥ ना हरि भजे न तीरथ सेवे चोटी कालि गही ॥१॥ रहाउ ॥ दारा मीत पूत रथ स्मपति धन पूरन सभ मही ॥ अवर सगल मिथिआ ए जानउ भजनु रामु को सही ॥१॥ फिरत फिरत बहुते जुग हारिओ मानस देह लही ॥ नानक कहत मिलन की बरीआ सिमरत कहा नही ॥२॥२॥



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अर्थ: 

(हे भाई! देखो, माया धारी की मंद-भागता! उस के) मन की आश मन में ही रह गई। ना उस ने परमात्मा का भजन किया, ना ही उस ने संत जनों की सेवा की, और, मौत ने बोदी आ पकड़ी ॥१॥ रहाउ ॥


 हे भाई! स्त्री, मित्र, पुत्र, गाड़ियाँ, माल-असबाब, धन-पदार्थ सारी ही धरती – यह सब कुछ नाशवान समझो। परमात्मा का भजन (ही) असली (मित्र) है ॥१॥


 हे भाई! कई युग (जूनों में) भटक भटक कर तूँ थक गया था। (अब) तुझे मनुष्या शरीर मिला है। नानक जी कहते हैं – (हे भाई! परमात्मा को) मिलने की यही बारी है, अब तूँ सिमरन क्यों नहीं करता ? ॥२॥२॥



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Sorath Mahalaa 9 || Man Kee Man Hee Maahe Rahee || Naa Har Bhaje N Teerathh Seve Chottee Kaal Gahee ||1||


 Rahaau || Daaraa Meet Poot Rathh Sampat Dhhan Pooran Sabh Mahee || Avar Sagal Mithheaa A Jaanau Bhajan Raam Ko Sahee ||1|| 


Firat Firat Bahute Jug Haareo Maanas Deh Lahee || Naanak Kehat Milan Kee Bareeaa Simrat Kahaa Nahee ||2||2||



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Meaning: 

The mind remains in the mind. He does not meditate on the Lord, nor does he perform service at sacred shrines, and so death seizes him by the hair. ||1|| Pause ||


 Wife, friends, children, carriages, property, total wealth, the entire world – know that all of these things are false. The Lord’s meditation alone is true. ||1|| 


Wandering, wandering around for so many ages, he has grown weary, and finally, he obtained this human body. Says Nanak Ji, this is the opportunity to meet the Lord; why don’t you remember Him in meditation ? ||2||2||

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