Hukamnama Sri Darbar Sahib, Amritsar Ang 556, 24-10-2024

 LABANA JAGRATI SANDESH

अपनी  प्रात: का शुभारंभ  प्रभु परमात्मा, श्री हरि स्मरण से करिये..

Amrit wele da






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ਸਲੋਕ ਮਃ ੩ ॥
ਸਭੁ ਕਿਛੁ ਹੁਕਮੇ ਆਵਦਾ ਸਭੁ ਕਿਛੁ ਹੁਕਮੇ ਜਾਇ ॥ ਜੇ ਕੋ ਮੂਰਖੁ ਆਪਹੁ ਜਾਣੈ ਅੰਧਾ ਅੰਧੁ ਕਮਾਇ ॥ ਨਾਨਕ ਹੁਕਮੁ ਕੋ ਗੁਰਮੁਖਿ ਬੁਝੈ ਜਿਸ ਨੋ ਕਿਰਪਾ ਕਰੇ ਰਜਾਇ ॥੧॥

ਮਃ ੩ ॥

ਸੋ ਜੋਗੀ ਜੁਗਤਿ ਸੋ ਪਾਏ ਜਿਸ ਨੋ ਗੁਰਮੁਖਿ ਨਾਮੁ ਪਰਾਪਤਿ ਹੋਇ ॥ ਤਿਸੁ ਜੋਗੀ ਕੀ ਨਗਰੀ ਸਭੁ ਕੋ ਵਸੈ ਭੇਖੀ ਜੋਗੁ ਨ ਹੋਇ ॥ ਨਾਨਕ ਐਸਾ ਵਿਰਲਾ ਕੋ ਜੋਗੀ ਜਿਸੁ ਘਟਿ ਪਰਗਟੁ ਹੋਇ ॥੨॥

ਪਉੜੀ ॥

ਆਪੇ ਜੰਤ ਉਪਾਇਅਨੁ ਆਪੇ ਆਧਾਰੁ ॥ ਆਪੇ ਸੂਖਮੁ ਭਾਲੀਐ ਆਪੇ ਪਾਸਾਰੁ ॥ ਆਪਿ ਇਕਾਤੀ ਹੋਇ ਰਹੈ ਆਪੇ ਵਡ ਪਰਵਾਰੁ ॥ ਨਾਨਕੁ ਮੰਗੈ ਦਾਨੁ ਹਰਿ ਸੰਤਾ ਰੇਨਾਰੁ ॥ ਹੋਰੁ ਦਾਤਾਰੁ ਨ ਸੁਝਈ ਤੂ ਦੇਵਣਹਾਰੁ ॥੨੧॥੧॥ ਸੁਧੁ ॥

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ਅਰਥ:

ਹਰੇਕ ਚੀਜ਼ ਪ੍ਰਭੂ ਦੇ ਹੁਕਮ ਵਿਚ ਹੀ ਆਉਂਦੀ ਹੈ ਤੇ ਹੁਕਮ ਵਿਚ ਹੀ ਚਲੀ ਜਾਂਦੀ ਹੈ ।

ਜੇ ਕੋਈ ਮੂਰਖ ਆਪਣੇ ਆਪ ਨੂੰ (ਵੱਡਾ) ਸਮਝ ਲੈਂਦਾ ਹੈ (ਤਾਂ ਸਮਝੋ) ਉਹ ਅੰਨ੍ਹਾ ਅੰਨ੍ਹਿਆਂ ਵਾਲਾ ਕੰਮ ਕਰਦਾ ਹੈ ।

ਹੇ ਨਾਨਕ! ਜਿਸ ਮਨੁੱਖ ਤੇ ਆਪਣੀ ਰਜ਼ਾ ਵਿਚ ਪ੍ਰਭੂ ਕਿਰਪਾ ਕਰਦਾ ਹੈ, ਉਹ ਕੋਈ ਵਿਰਲਾ ਗੁਰਮੁਖ ਹੁਕਮ ਦੀ ਪਛਾਣ ਕਰਦਾ ਹੈ ॥੧॥

ਜਿਸ ਮਨੁੱਖ ਨੂੰ ਸਤਿਗੁਰੂ ਦੇ ਸਨਮੁਖ ਹੋ ਕੇ ਨਾਮ ਦੀ ਪ੍ਰਾਪਤੀ ਹੁੰਦੀ ਹੈ, (ਸਮਝੋ) ਉਹ ਸੱਚਾ ਜੋਗੀ ਹੈ, ਜਿਸ ਨੂੰ ਜੋਗ ਦੀ ਜਾਚ ਆਈ ਹੈ ।

ਐਸੇ ਜੋਗੀ ਦੇ ਸਰੀਰ (ਰੂਪ) ਨਗਰ ਵਿਚ ਹਰੇਕ (ਗੁਣ) ਵੱਸਦਾ ਹੈ ਪਰ ਸਿਰਫ਼ ਭੇਖ ਕਰ ਕੇ ਜੋਗੀ ਬਨਣ ਵਾਲਾ ਪ੍ਰਭੂ-ਮੇਲ ਨਹੀਂ ਕਰ ਸਕਦਾ ।

ਹੇ ਨਾਨਕ! ਜਿਸ ਦੇ ਹਿਰਦੇ ਵਿਚ ਪ੍ਰਭੂ ਪ੍ਰਤੱਖ ਹੋ ਜਾਂਦਾ ਹੈ, ਇਹੋ ਜਿਹਾ ਕੋਈ ਵਿਰਲਾ ਜੋਗੀ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ॥੨॥

ਉਸ ਨੇ ਆਪ ਹੀ ਜੀਵਾਂ ਨੂੰ ਪੈਦਾ ਕੀਤਾ ਹੈ ਤੇ ਆਪ ਹੀ (ਉਹਨਾਂ ਦਾ) ਆਸਰਾ (ਬਣਦਾ) ਹੈ ।

ਆਪ ਹੀ ਹਰੀ ਸੂਖਮ ਰੂਪ ਵੇਖੀਦਾ ਹੈ ਤੇ ਆਪ ਹੀ (ਸੰਸਾਰ ਦਾ) ਪਰਪੰਚ (ਰੂਪ) ਹੈ ।

ਆਪ ਹੀ ਇਕੱਲਾ ਹੋ ਕੇ ਰਹਿੰਦਾ ਹੈ ਤੇ ਆਪ ਹੀ ਵੱਡੇ ਪਰਵਾਰ ਵਾਲਾ ਹੈ ।

ਹੇ ਹਰੀ! ਨਾਨਕ ਤੇਰੇ ਸੰਤਾਂ ਦੀ ਚਰਨ-ਧੂੜ (ਰੂਪ) ਦਾਨ ਮੰਗਦਾ ਹੈ,

ਤੂੰ ਹੀ ਦੇਣ ਵਾਲਾ ਹੈਂ, ਕੋਈ ਹੋਰ ਦਾਤਾ ਮੈਨੂੰ ਦਿੱਸ ਨਹੀਂ ਆਉਂਦਾ ॥੨੧॥੧॥ ਸੁਧੁ ॥

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हिन्दी ट्रांसलेट:

सलोक मः ३ ॥
सभु किछु हुकमे आवदा सभु किछु हुकमे जाइ ॥ जे को मूरखु आपहु जाणै अंधा अंधु कमाइ ॥ नानक हुकमु को गुरमुखि बुझै जिस नो किरपा करे रजाइ ॥१॥
मः ३ ॥
सो जोगी जुगति सो पाए जिस नो गुरमुखि नामु परापति होइ ॥ तिसु जोगी की नगरी सभु को वसै भेखी जोगु न होइ ॥ नानक ऐसा विरला को जोगी जिसु घटि परगटु होइ ॥२॥
पउड़ी ॥
आपे जंत उपाइअनु आपे आधारु ॥ आपे सूखमु भालीऐ आपे पासारु ॥ आपि इकाती होइ रहै आपे वड परवारु ॥ नानकु मंगै दानु हरि संता रेनारु ॥ होरु दातारु न सुझई तू देवणहारु ॥२१॥१॥ सुधु ॥

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अर्थ:

श्लोक महला ३॥

सब कुछ परमात्मा के हुक्म अनुसार ही आता है और उसके हुक्म में ही सब कुछ चला जाता है।

यदि कोई मूर्ख अपने आपको ही करने वाला जानता है तो वह अन्धा ही है और अन्धे कर्म ही कर रहा है।

हे नानक ! कोई विरला गुरुमुख ही परमात्मा के हुक्म को समझता है, जिस पर वह अपनी रज़ा से कृपा करता है॥ १॥

महला ३॥

जिसे गुरु के माध्यम से परमात्मा का नाम प्राप्त हुआ है, वही असल में योगी है और उसे ही सच्ची योग युक्ति प्राप्त होती है।

उस योगी के देहि रूपी नगर में सर्व प्रकार के गुण निवास करते हैं किन्तु योगी का वेष धारण करने से सच्चा योग प्राप्त नहीं होता।

हे नानक ! ऐसा विरला ही कोई योगी है, जिसके अन्तर्मन में परमात्मा प्रगट होता है॥ २ ॥

पउड़ी।

भगवान ने खुद ही जीव उत्पन्न किए हैं और खुद ही उन सबका आधार है।

वह आप ही सूक्ष्म रूप में दिखाई देता है और आप ही उसका विश्व में प्रसार नजर आता है।

वह आप ही अकेला विचरन करता रहता है और आप ही दुनिया रूपी बड़े कुटुंब वाला है।

नानक तो परमात्मा के संतों की चरण-धूलि का ही दान माँगता है।

हे परमेश्वर ! तू ही जीवों को देने वाला है और तेरे सिवाय मुझे अन्य कोई भी दाता नजर नहीं आता॥ २१॥ १॥ शुद्ध ॥
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 English translation 

Salok M: 3 ||
Sabhu kichhu hukame aavadaa sabhu kichhu hukame jaai || Je ko moorakhu aapahu jaa(nn)ai anddhaa anddhu kamaai || Naanak hukamu ko guramukhi bujhai jis no kirapaa kare rajaai ||1||


M:h 3 ||

So jogee jugati so paae jis no guramukhi naamu paraapati hoi || Tisu jogee kee nagaree sabhu ko vasai bhekhee jogu na hoi || Naanak aisaa viralaa ko jogee jisu ghati paragatu hoi ||2||
Pau(rr)ee ||


Aape jantt upaaianu aape aadhaaru || Aape sookhamu bhaaleeai aape paasaaru || Aapi ikaatee hoi rahai aape vad paravaaru || Naanaku manggai daanu hari santtaa renaaru || Horu daataaru na sujhaee too deva(nn)ahaaru ||21||1|| sudhu ||

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Meaning:

Shalok, Third Mehl:

Everything comes by the Lord's Will, and everything goes by the Lord's Will.

If some fool believes that he is the creator, he is blind, and acts in blindness.

O Nanak, the Gurmukh understands the Hukam of the Lord's Command; the Lord showers His Mercy upon him. ||1||

Third Mehl:

He alone is a Yogi, and he alone finds the Way, who, as Gurmukh, obtains the Naam.

In the body-village of that Yogi are all blessings; this Yoga is not obtained by outward show.

O Nanak, such a Yogi is very rare; the Lord is manifest in his heart. ||2||

Pauree:

He Himself created the creatures, and He Himself supports them.

He Himself is seen to be subtle, and He Himself is obvious.

He Himself remains a solitary recluse, and He Himself has a huge family.

Nanak asks for the gift of the dust of the feet of the Saints of the Lord.

I cannot see any other Giver; You alone are the Giver, O Lord. ||21||1|| Sudh ||

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सन्त बाबा सीतलसिंह जी (महू वालों)  एवं सन्त बाबा हिम्मत सिंह साहिब दरबार के वर्तमान महन्त सन्त बाबा सुखदेव सिंह जी की कृपा आर्शीवाद  सदके यह सेवा दास कर पा रहा है
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गद्दीनशीन महन्त सन्त बाबा सुखदेव सिंह साहिब जी  

सम्पर्क: 

महन्त सन्त सुखदेव सिंह जी 

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मो. 9818126912



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