HUKAMNAMA SACHKHAND SHRI DARBAR SAHIB AMRITSAR अपनी प्रात: का शुभारंभ प्रभु परमात्मा, श्री हरि स्मरण से करिये.

 HUKAMNAMA SACHKHAND SHRI DARBAR SAHIB AMRITSAR 



अपनी प्रात: का शुभारंभ प्रभु परमात्मा, श्री हरि स्मरण से करिये.

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श्री हरमिन्दर साहिब (स्वर्ण मन्दिर) अमृतसर में श्री गुरु ग्रन्थ साहिब जी  के अंग 673 दिनांक 30-08-2024  को  प्रात: जारी गुरुबाणी, अमृतवचन/हुकमनामा : पंजाबी, हिन्दी व अंग्रेजी में अर्थ सहित पढ़िए....
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Amrit vele da Hukamnama Sri  Darbar Sahib  Amritsar, Ang 673, 30-08-2024

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ਧਨਾਸਰੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥ ਪਾਨੀ ਪਖਾ ਪੀਸਉ ਸੰਤ ਆਗੈ ਗੁਣ ਗੋਵਿੰਦ ਜਸੁ ਗਾਈ ॥ ਸਾਸਿ ਸਾਸਿ ਮਨੁ ਨਾਮੁ ਸਮ੍ਹ੍ਹਾਰੈ ਇਹੁ ਬਿਸ੍ਰਾਮ ਨਿਧਿ ਪਾਈ ॥੧॥ ਤੁਮ੍ਹ੍ਹ ਕਰਹੁ ਦਇਆ ਮੇਰੇ ਸਾਈ ॥ ਐਸੀ ਮਤਿ ਦੀਜੈ ਮੇਰੇ ਠਾਕੁਰ ਸਦਾ ਸਦਾ ਤੁਧੁ ਧਿਆਈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ ਤੁਮ੍ਹ੍ਹਰੀ ਕ੍ਰਿਪਾ ਤੇ ਮੋਹੁ ਮਾਨੁ ਛੂਟੈ ਬਿਨਸਿ ਜਾਇ ਭਰਮਾਈ ॥ ਅਨਦ ਰੂਪੁ ਰਵਿਓ ਸਭ ਮਧੇ ਜਤ ਕਤ ਪੇਖਉ ਜਾਈ ॥੨॥ ਤੁਮ੍ਹ੍ਹ ਦਇਆਲ ਕਿਰਪਾਲ ਕ੍ਰਿਪਾ ਨਿਧਿ ਪਤਿਤ ਪਾਵਨ ਗੋਸਾਈ ॥ ਕੋਟਿ ਸੂਖ ਆਨੰਦ ਰਾਜ ਪਾਏ ਮੁਖ ਤੇ ਨਿਮਖ ਬੁਲਾਈ ॥੩॥ ਜਾਪ ਤਾਪ ਭਗਤਿ ਸਾ ਪੂਰੀ ਜੋ ਪ੍ਰਭ ਕੈ ਮਨਿ ਭਾਈ ॥ ਨਾਮੁ ਜਪਤ ਤ੍ਰਿਸਨਾ ਸਭ ਬੁਝੀ ਹੈ ਨਾਨਕ ਤ੍ਰਿਪਤਿ ਅਘਾਈ ॥੪॥੧੦॥

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ਅਰਥ: (ਹੇ ਪ੍ਰਭੂ! ਮੇਹਰ ਕਰ) ਮੈਂ (ਤੇਰੇ) ਸੰਤਾਂ ਦੀ ਸੇਵਾ ਵਿਚ (ਰਹਿ ਕੇ, ਉਹਨਾਂ ਵਾਸਤੇ) ਪਾਣੀ (ਢੋਂਦਾ ਰਹਾਂ, ਉਹਨਾਂ ਨੂੰ) ਪੱਖਾ (ਝੱਲਦਾ ਰਹਾਂ, ਉਹਨਾਂ ਵਾਸਤੇ ਆਟਾ) ਪੀਂਹਦਾ ਰਹਾਂ, ਤੇ, ਹੇ ਗੋਬਿੰਦ! ਤੇਰੀ ਸਿਫ਼ਤ-ਸਾਲਾਹ ਤੇਰੇ ਗੁਣ ਗਾਂਦਾ ਰਹਾਂ। ਮੇਰਾ ਮਨ ਹਰੇਕ ਸਾਹ ਦੇ ਨਾਲ (ਤੇਰਾ) ਨਾਮ ਚੇਤੇ ਕਰਦਾ ਰਹੇ, ਮੈਂ ਤੇਰਾ ਇਹ ਨਾਮ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕਰ ਲਵਾਂ ਜੋ ਸੁਖ ਸ਼ਾਂਤੀ ਦਾ ਖ਼ਜ਼ਾਨਾ ਹੈ ॥੧॥ 

ਹੇ ਮੇਰੇ ਖਸਮ-ਪ੍ਰਭੂ! (ਮੇਰੇ ਉੱਤੇ) ਦਇਆ ਕਰ। ਹੇ ਮੇਰੇ ਠਾਕੁਰ! ਮੈਨੂੰ ਇਹੋ ਜਿਹੀ ਅਕਲ ਬਖ਼ਸ਼ ਕਿ ਮੈਂ ਸਦਾ ਹੀ ਤੇਰਾ ਨਾਮ ਸਿਮਰਦਾ ਰਹਾਂ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
 ਹੇ ਪ੍ਰਭੂ! ਤੇਰੀ ਕਿਰਪਾ ਨਾਲ (ਮੇਰਾ ਅੰਦਰੋਂ) ਮਾਇਆ ਦਾ ਮੋਹ ਮੁੱਕ ਜਾਏ, ਅਹੰਕਾਰ ਦੂਰ ਹੋ ਜਾਏ, ਮੇਰੀ ਭਟਕਣਾ ਦਾ ਨਾਸ ਹੋ ਜਾਏ, ਮੈਂ ਜਿੱਥੇ ਕਿੱਥੇ ਜਾ ਕੇ ਵੇਖਾਂ, ਸਭਨਾਂ ਵਿਚ ਮੈਨੂੰ ਤੂੰ ਆਨੰਦ-ਸਰੂਪ ਹੀ ਵੱਸਦਾ ਦਿੱਸੇਂ ॥੨॥ 

ਹੇ ਧਰਤੀ ਦੇ ਖਸਮ! ਤੂੰ ਦਇਆਲ ਹੈਂ, ਕਿਰਪਾਲ ਹੈਂ, ਤੂੰ ਦਇਆ ਦਾ ਖ਼ਜ਼ਾਨਾ ਹੈਂ, ਤੂੰ ਵਿਕਾਰੀਆਂ ਨੂੰ ਪਵਿੱਤ੍ਰ ਕਰਨ ਵਾਲਾ ਹੈਂ। ਜਦੋਂ ਮੈਂ ਅੱਖ ਝਮਕਣ ਜਿਤਨੇ ਸਮੇ ਲਈ ਭੀ ਮੂੰਹੋਂ ਤੇਰਾ ਨਾਮ ਉਚਾਰਦਾ ਹਾਂ, ਮੈਨੂੰ ਇਉਂ ਜਾਪਦਾ ਹੈ ਕਿ ਮੈਂ ਰਾਜ-ਭਾਗ ਦੇ ਕ੍ਰੋੜਾਂ ਸੁਖ ਆਨੰਦ ਮਾਣ ਲਏ ਹਨ ॥੩॥ 

ਉਹੀ ਜਾਪ ਤਾਪ ਉਹੀ ਭਗਤੀ ਸਿਰੇ ਚੜ੍ਹੀ ਜਾਣੋ, ਜੇਹੜੀ ਪਰਮਾਤਮਾ ਦੇ ਮਨ ਵਿਚ ਪਸੰਦ ਆਉਂਦੀ ਹੈ। ਹੇ ਨਾਨਕ ਜੀ! ਪਰਮਾਤਮਾ ਦਾ ਨਾਮ ਜਪਿਆਂ ਸਾਰੀ ਤ੍ਰਿਸ਼ਨਾ ਮੁੱਕ ਜਾਂਦੀ ਹੈ, (ਮਾਇਕ ਪਦਾਰਥਾਂ ਵਲੋਂ) ਪੂਰੇ ਤੌਰ ਤੇ ਰੱਜ ਜਾਈਦਾ ਹੈ ॥੪॥੧੦॥

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धनासरी महला ५ ॥ पानी पखा पीसउ संत आगै गुण गोविंद जसु गाई ॥ सासि सासि मनु नामु सम्हारै इहु बिस्राम निधि पाई ॥१॥ तुम्ह करहु दइआ मेरे साई ॥ ऐसी मति दीजै मेरे ठाकुर सदा सदा तुधु धिआई ॥१॥ रहाउ ॥ तुम्हरी क्रिपा ते मोहु मानु छूटै बिनसि जाइ भरमाई ॥ अनद रूपु रविओ सभ मधे जत कत पेखउ जाई ॥२॥ तुम्ह दइआल किरपाल क्रिपा निधि पतित पावन गोसाई ॥ कोटि सूख आनंद राज पाए मुख ते निमख बुलाई ॥३॥ जाप ताप भगति सा पूरी जो प्रभ कै मनि भाई ॥ नामु जपत त्रिसना सभ बुझी है नानक त्रिपति अघाई ॥४॥१०॥

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अर्थ: (हे प्रभु! कृपा कर) मैं (तेरे) संतों की सेवा में (रह के, उनके लिए) पानी (ढोता रहूँ, उनको) पंखा (झलता रहूँ, उनके लिए आटा) पीसता रहूँ, और, हे गोबिंद! तेरी सिफत सलाह तेरे सुन गाता रहूँ। मेरे मन प्रतेक साँस के साथ (तेरा) नाम याद करता रहे, मैं तेरा यह नाम प्राप्त कर लूँ जो सुख शांति का खज़ाना है ॥१॥ 

हे मेरे खसम-प्रभु! (मेरे ऊपर) दया कर। हे मेरे ठाकुर! मुझे ऐसी अक्ल दो कि मैं सदा ही तेरा नाम सिमरता रहूँ ॥१॥ रहाउ ॥
 हे प्रभु! तेरी कृपा से (मेरे अंदर से) माया का मोह ख़त्म हो जाए, अहंकार दूर हो जाए, मेरी भटकना का नास हो जाए, मैं जहाँ जहाँ जा के देखूँ सब में मुझे तूँ आनंद-सरूप ही वसता दिखे ॥२॥ 

हे धरती के खसम! तूँ दयाल हैं, कृपाल हैं, तूँ दया का खज़ाना हैं, तूँ विकारियों को पवित्र करने वाले हैं। जब मैं आँख झमकण जितने समय के लिए मुँहों तेरा नाम उचारता हूँ, मुझे इस तरह जापता है कि मैं राज-भाग के करोड़ों सुख आनन्द प्रापत कर लिए हैं ॥३॥ 

वही जाप ताप वही भगती पूरन मानों, जो परमात्मा के मन में पसंद आती है। हे नानक जी! परमात्मा का नाम जपिया सारी त्रिसना खत्म हो जाती है, (माया वाले पदार्थों से) पूरन तौर से संतुस्टी हो जाती है ॥४॥१०

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Dhhanaasaree Mahalaa 5 || Paanee Pakhaa Peesau Sant Aagai Gun Govind Jas Gaaee || Saas Saas Man Naam Samhaarai Ihu Bisraam Nidhh Paaee ||1|| Tumh Karhu Daeaa Mere Saaee || Aisee Mat Deejai Mere Thaakur Sadaa Sadaa Tudhh Dhhiaaee ||1|| Rahaau || Tumharee Kirpaa Te Mohu Maan Shhoottai Binas Jaae Bharmaaee || Anad Roop Raveo Sabh Madhhe Jat Kat Pekhau Jaaee ||2|| Tumh Daeaal Kirpaal Kirpaa Nidhh Patit Paavan Gosaaee || Kott Sookh Aanand Raaj Paae Mukh Te Nimakh Bulaaee ||3|| Jaap Taap Bhagat Saa Pooree Jo Prabh Kai Man Bhaaee || Naam Japat Trisnaa Sabh Bujhee Hai Naanak Tripat Aghaaee ||4||10||

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Meaning: I carry the water, wave the fan, and grind the corn for the Saints; I sing the Glorious Praises of the Lord of the Universe. With each and every breath, my mind remembers the Naam, the Name of the Lord; in this way, it finds the treasure of peace. ||1|| 

Have pity on me, O my Lord and Master. Bless me with such understanding, O my Lord and Master, that I may forever and ever meditate on You. ||1|| Pause || 

By Your Grace, emotional attachment and egotism are eradicated, and doubt is dispelled. The Lord, the embodiment of bliss, is pervading and permeating in all; wherever I go, there I see Him. ||2|| 

You are kind and compassionate, the treasure of mercy, the Purifier of sinners, Lord of the world. I obtain millions of joys, comforts and kingdoms, if You inspire me to chant Your Name with my mouth, even for an instant. ||3||

 That alone is perfect chanting, meditation, penance and devotional worship service, which is pleasing to God’s Mind. Chanting the Naam, all thirst and desire is satisfied; O Nanak Ji is satisfied and fulfilled. ||4||10||

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सन्त बाबा सीतलसिंह जी महू वालों एवं महन्त सन्त बाबा सुखदेव सिंह जी की कृपा सदके आपनी सेवा आप कराई 🙏


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गद्दीनशीन महन्त सन्त बाबा सुखदेव सिंह साहिब जी  

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