सन्त बाबा हिम्मत सिंह साहिब का जोड मेला : 20 जुलाई 2024 को सिन्धी श्रध्दालुओं के लिये विशेष सिन्धी भजनों का हुआ आयोजन हुआ..... सन्त बाबा हिम्मत सिंह साहिब सिन्धी समाज से थे....

 सन्त बाबा हिम्मत सिंह साहिब का जोड़ मेला : 




 20 जुलाई 2024 को सिन्धी श्रध्दालुओं के लिये विशेष सिन्धी भजनों का हुआ आयोजन हुआ..... 


 सन्त बाबा हिम्मत सिंह साहिब सिन्धी समाज से थे....


अजमेर, (जी.एस.लबाना)/

सन्त बाबा हिम्मत सिंह साहिब में पूर्ण विश्वास और श्रध्दा रखने वालो अजमेर की प्रसिद्ध दरबार सांई मेठाराम साहिब के गद्दीनशीन महन्त सन्त भाई भगत लाल ने  सन्त बाबा हिम्मत सिंह साहिब की शान में सिन्धी भजनों का गायन कर मौजूद रही संगत को निहाल किया। भजन गीतों पर संगत ने श्रध्दालु झूम उठे, अपनी भावना रोके बिना खूब नाच कर सन्त बाबा हिम्मत सिंह साहिब की खुशियां प्राप्त की। 

ज्ञात रहे कि डेरा संत बाबा हिम्मत सिंह साहिब पाकिस्तान के सिन्ध प्रान्त के टन्डो जाम नगर में था।

सन्त बाबा हिम्मत सिंह साहिब 

सिन्धी समाज के थे

इनके पिता का नाम रामचन्द कोडवानी था, बताया जाता है कि अजमेर में इनके खानदान की आठवीं पीडी चल रही है । 

 सन्त बाबा हिम्मत सिंह साहिब डेरे के आठवें गद्दीनशीन महंत थे, 

सातवें गद्दीनशीन महन्त सन्त बाबा किस्सू सिंह जी के  वर्ष 1886  में शरीर त्यागने उपरान्त बारबें दिन इनके चेले सन्त बाबा हिम्मत सिंह साहिब को डेरे की जिम्मेवारी सौपते हुए दस्तार बन्दी की गई। महन्त संत बाबा किस्सू सिंह साहिब के चेलों में हिम्मत सिंह के अलावा  भाई ठाकुर सिंह,  भाई नन्दा सिंह,  भाई  प्यारा सिंह,  भाई  हरी सिंह चेले थे, सन्त बाबा हिम्मत सिंह साहिब की गद्दीनशीनी में इनके गुरु भाई निंदा सिंह जी का बहूत बड़ा त्याग था, कुछ प्रेमियों  ने भाई नंदा सिंह को गद्दीनशीन होने के लिये उकसाया और अपना समर्थन देने की बात कही, परन्तु भाई नंदा सिंह जी कहा मैं गद्दीनशीन होने  के तैयार नहीं हूं मैं कोई झगड़ा नहीं करेगा, और कहा कि मुझे स्वप्न। में मेरे गुरुजी ने कहा है कि गद्दीनशीन भाई हिम्मत सिंह जी ही होगें वह मेरा रुप है ।







































सन्त बाबा हिम्मत सिंह साहिब के बारे में: 
(जैसा "सन्त हीरे" 
नामक पुस्तक में लिखा है)

सन्त हीरे: नामक पुस्तक का प्रकाशन "अकाल बुंगा डेरा भाई हिम्मत सिंह साहिब जी" दरबार के बारवें महन्त सन्त बाबा गुरमुख सिंह साहिब जी ने दिसम्बर 1955 में  करवाया था, सन्त बाबा गुरमुख सिंह साहिब जी ने पुस्तक की लेखनी का  कार्य जम्मू-कश्मीर जिला- पूंछ, पो. राजौरी निवासी कविराज कवि ज्ञानी सुरेन्द्र सिंह जी "भंवर" से करवाया था। 

कविराज कवि ज्ञानी सुरेन्द्र सिंह जी से समयानुसार पुस्तक की लिखाई इस प्रकार की जैसे मानों समस्त घटनाक्रम इनकी आखों के सामने हुआ, उनके कलम से लिखी पुस्तक महन्त सन्त बाबा गुरमुख सिंह साहिब ने प्रकाशित कर समाज पर बडा उपकार किया है 

पुस्तक में प्रकाशित हूबहू  लेख अनुसार  सन्त बाबा हिम्मत सिंह साहिब का स्वभाव बहुत कोमल और दयाशील था, उसका एक नमूना पाठकों की भेंट किया जाता है। कहते हैं श्री भाई किस्तूसिंह जी ने अपनी मौजूदगी में  एक बड़ा भारी महोत्सव (यज्ञ) किया, और पंजाब व  सिंध देशों के महात्मा आये, सद्गृहस्थी नर-नारी बेशुमार आये थे । तब आप की आयु लगभग 18-19 वर्ष की थी। और लंगर सेवा बड़े उत्साह से कर रहे थे, दूर-दूर तक पंगत बैठी थी आप उस समय लंगर वरता रहे थे ।

एक नौजवान स्त्री आप पर मोहित हो गई और एक कोने में बैठ गई, जब आप उसके पास पहुँचे तो उस स्त्री ने इनका पीछे से चोला पकड़ लिया । आप ने पीछे लौट कर उसके मुँह पर चपेड़ मार दी, वह वबचारी डर गई और रोती आँसू बहाती, प्रशाद खाती रही, यह भी देखते रहे। बाद में आपने उससे पूछा देवी ! चोला क्यों पकड़ा था, वह रो के कहने लगी महाराज ! मैं वे उलाद हूँ मैं बेटा माँगती थी । तब आप उस पर दयालू हुये और वाक निकाला जाओ बेटा होगा, मगर उपदेश करते हैं कि सन्तों से कोई भी चीज माँगनी हो तो  शुद्ध भावना से माँगनी चाहिये, उसी बर्ष में देवी के पुत्र हुआ, यह सन्त बाबा हिम्मत सिंह साहिब की छोटी उमर की वाक सिद्धी है।

श्री भाई किस्सू सिंह जी से नाराज होके आपक हैदर- आबाद जाना 

एक बार श्री भाई किस्सू सिंह जी से नाराज़ होकर आप हैदर आबाद चले गये, वहाँ अपने अकाल बुगे में जा हाजर हुये। वहाँ के महंत ने आपको पैसे और बरतन दिया कि बाजार से दही लाओ, आज्ञा मान कर चले गये। मगर कुछ देर हो गई और आप वापस नहीं आए। किसी सन्त ने  महंत जी  से पूछा हिम्मत सिंह दही लेकर वापस आया है, महन्त ने जवाब दिया कि ऐसा शीघ्रता से काम करने वाला होता तो वहाँ से (टंडा जाम से) क्यों आता। यह तमाम बात आप ने सुन ली  और दही देकर उल्टे कदम रवाना हुये और सायंकाल टंडाजाम पैदल पहुँच गये । श्री भाई किस्सू सिंह जी ने पूछा सुन भाई ! वापस क्यों आया है।

आपने मत्था टेक कर जवाब दिया महाराज ! वह हिम्मतसिंह वापस नहीं आया है, यह दूसरा है जो वापस आया है- अर्थात् वह स्वभाव बदल दिया गया है, यह बचन सुनकर श्री भाई किस्तूसिंह जी बड़े प्रसन्न हुये।

आपकी दयालुता का नमूना

दूर दराज गाँवों से जो गरीब आदमी लकड़ें घास बेचने आते, बारश या गरमी में विचारे तमाम शहर में फिर-फिर कर परेशान हो जाते हैं, आखर एक जगह तमाम बैठ जाते
हैं। मगर उनकी लकड़ें घास नहीं बिकता अमीर लोग इस लिये लेने से खामोश रहते है, कि शाम होयेगी और यह लोग लकड़ी घास सस्ता देंगे। 

श्री भाई हिम्मत सिंह जी उन गरीबों  के पास बारिश या धूप में  जाकर  बैठते हैं, और सबको डेरे में लाकर भोजन खिलाते हैं। अगर जिनका लकड़ी घास न बिके उनका लकड़ी घास आप ले लेते हैं। और उनको मुट्ठी भर-भर कर माया देते हैं, चाहे किसी को 5/- रुपये जावें तो चाहे किसी को 2/- रुपये जावें। एक दिन किसी प्रेमी ने यह उदारता देखकर आपको ऐसा करने से टोका तो, उसे ऐसा बचन कहने से फौरन रोक दिया । इस से साबत होता है कि आप पूर्ण ब्रह्मज्ञानी भेदभाव से रहित थे, क्योंकि इन मज़दूरों में अधिक मुसलमान हुआ करते थे । 

आपकी वाक सिद्धी

श्री भाई बहरूमल्ल जी (जो खानपुर से श्री भाई कालू- सिंह जी के साथ आये थे) इनके पोते श्री भाई गुपालदास जी के कोई सन्तान नहीं थी, सन्तान के लिये इन्होंने दूसरी शादी भी की थी मगर उलाद कोई न हुई। आखर श्री भाई हिम्मतसिंह जी की शरण ली, आपने श्री मुख से वाक्य उचारण किया कि भाई गोपाल दास जी ! आपके घर चार बेटे होंगे ।

यह सुनकर श्री गोपालदासजी को बड़ी खुशी हुई, और समयानुसार (1) मूलचंद (2) ऊघोराम (3) रीझूराम (4) भेरूराम  हुये। इन्हीं बातों से आप को लोग अब भी सिद्ध पुरुष मानते हैं। और आम लोग कहते हैं कि आप आज भी  हाजर नाजर है।

आप ने समुदर में सिक्ख प्रेमी का जहाज किनारे लाये

यह भाई आवत राय श्री सतराम दास जी के चचा थे जो कराची में व्यापार करते थे। वही टंडा जाम निवासी व्यापारी का  जहाज (बेड़ी) लदा हुआ मसकद की तर्फ से कराची आ रहा था, मगर तुफान के चलने से उसका जहाज डूबने लगा । और उसने श्री भाई हिम्मतसिंह जी को निम्रना से अरदार शुरु की, सहजे सहजे जहाज किनारे पहुँच गया । यह प्रेमी माल बेचकर टंडा जाम पहुँचा, और ख़्याल आया पहिले अकालबु बुंगे में मत्था टेक के और श्री भाई हिम्मतसिंह जी को बंदना करके घर चलूंगा । अपितु वह व्यापारी आया और गुरुद्वारा में मत्था टेक के श्री भाई हिम्मतसिंह जी की तरफ़ गया, मगर वह स्नान कर रहे थे। वह वहीं स्नानगृह  में चला गया और आप के चरणों में नमस्कार कर के वहीं बैठ गया ।

आप केशी स्नान कर रहे थे आपके बाजुओं पर और गरदन  पर और पीठ पर लंबी २ झरीटें (घरूसैं ), लाल-लाल दाग पड़े हुये थे । और घी हल्दी मरहम की तरह लेप की हुई थी। यह देखकर वह प्रेमी कहता है महाराज ! 

यह कैसे निशान पड़े हैं मानो खुन बाहर आने को तय्यार है, जैसे किसी ने किसी को मारा हो?

इस प्रेमी (आवत राय) को आप जवाब देते हैं कि अमुक दिन जब तुमारा जहाज डूबने लगा था, और तुमारे पुकारने पर सुश्कल से मैंने किनारे पर लगाया था, यह निशान तुमारे जहाज के साथ कुश्ती लड़ने के हैं। अब पूछते हो कि यह निशान कैसे पड़े ? तब वह प्रेमी प्रेमा-आश्रु बहाते हुए चरणों में लिपट जाता है, और आपके  चरणों में माया का ढेर लगा देता है। और तमाम नगर में आप के यश को फैलाता है, तमाम देश में इस करामत की प्रसिद्धी हो जाती है। जिस तरह श्री गुरु तेग बहादर साहिब को मक्खनशाह लबाणा  ने जाहिर किया था, ऐसे ही इस प्रेमी ने तमाम सिंध में मशहूरी कर दी।

आपकी सिद्धी का एक और नमूना

प्रातःकाल आप दरबार में झाडू मार रहे थे कि अचा- नक रोने की आवाज़ आई, मालूम हुआ कि एक मियां रो रहा है। उसके पास जाकर रोने का कारण पूछा, मियां ने कहा महाराज ! बकरियों का झुंड देकर ऊँट लिया था। सो कल पहले ही दिन किराये पर ले गया था और पाँच रुपये कमाये थे । आज वह ऊँट मर गया है, तमाम घर की पूँजी - जायदाद खत्म हो गई रोऊँ न तो क्या करूँ ? उसे हौसला देते हैं मगर उस गरीब की धीरज नहीं बंधती । आखिर उस पर तरस करके पलत्थी मार के ऊँट के पास बैठ के सुखमनी साहिब का पाठ किया, और चरण अँगूठा ऊँट से लगाया, तो ऊँट उठ खड़ा हुआ । तब आपने उसे कहा इसे फौरन बेच दे, उसने ऐसा ही किया । यह वार्ता भी छुपी ना रही आपकी महिमा सूर्य की तरह चमकने लगी ।

आपकी करामत कहानी श्री सतरामदास जी की जबानी

टंडा जाम में आसू मल की औरत सख़्त बीमार और मौत के करीब  थी । बिचारे  आसू मल की दो औरतें मर चुकी थीं, आसूराम मल रहता  रोता विरलाप करता, अपना सिर-पेट पीटता था।  सतराम दास जी सुनाते हैं कि हम गुरद्वारे की रोटियें लेकर देने गये, तब श्री हिम्मतसिंहजी ने हम बालकों से पूछा ? "आसू की स्त्री का क्या हाल है ?" तब हमने उत्तर देते हुए कहा कि वह मर रही है और वह अपना सिर-पेट-पीट रहा है। तब हमसे पूछा ! "कैसे पेट कूटता है ?" तब हमने अपना पेट बजा कर बतलाया कि ऐसे पीटता है, तब श्री हजुर हँस पड़े और हमसे कहने लगे "उसे कहो पेट न बजाओ 50/-  रुपये हमें दे दो तो तुम्हारी औरत ठीक हो जावेगी।" हमने आकर उसे कहा और वह दौड़ता हुआ गया, और 50/-  रुपये भेटा दी, उसकी औरत राजी हो गई। बाल बच्चेदार हुई, श्री सतराम दासजी सुनाते हैं अब चार वर्ष हुए कि उसने शरीर त्यागा है।

आपके मशहूर चेले

(१) श्री भाई ठाकरसिंह जी हैदराबादी दीवान वंशज थे, जो आपकी मौजूदगी में ही सच्च खंड पधार गये थे । मगर आई ठाकर सिंह जी के चेले श्री भाई फूलासिंह जी मौजूद थे और माई फूलासिंहजी के चेले भाई गागूसिंहजी भी मौजूद थे।

(२) दूसरे चेले मुखल सिंह जी लबाणा  थे जो परलोकवासी हो गये थे। भाई ठाकर सिंह जी के एक छिणकू सिंह शिष्य थे वह भी  भी परलोक सिधार  गये थे ।

 पूज्य भाई हिम्मतसिंह जी 
के अन्य कोतक

 कैमाड़ी (कराची) में आप प्रचार नमित गये, और गुलाब राय जी ने आपका लंगर अपने घर में किया । आपके साथ पाँच छः प्रेमी थे मगर गुलाब राय ने 25 आद‌मियों का भोजन तय्यार कर लिया। जब हाथ धुलाने का समय आया तो 50 आदमी आपके प्रेमी (जो कहीं से आये थे) मत्था टेक के आप से जाने की आज्ञा मांगते हैं। मगर आपने कहा हाथ घोओ और भोजन करके जाओ, तब गुलाबराय घबरा गया । मगर आपकी कृपा से २५ आदमियों का भोजन 75 आदमियों ने खाया और फिर भी भोजन बच रहा था । यह वार्ता श्री सतरामदास जी ने अपनी ज़बानी लिखारी को लिखाई है।

आप बाल्यावस्था से ही परम सिद्ध थे

एक बार श्री भाई किस्सू सिंह जी ने किसी प्रेमी को कहा कि-'जाओ गुरद्वारे में से हिम्मतसिंह को बुला लाओ ।' वह गया और क्या देखता है कि श्री हिम्मतसिंहजी के तमाम अंग जुदा-जुदा पड़े हैं। सिर कहीं और धड़, बाजू, पाओं सब गुरद्वारे में बिखरे पड़े हैं, वह दौड़ता हुआ आया और रो के कहने लगा- महाराज ! श्री हिम्मतसिंहजी को कोई कतल कर गया है, शरीर के टुकड़े हुये मैंने देखे हैं। श्री किस्सू सिंहजी हंस के कहने लगे - अब जाके देखो, जब वह प्रेमी दुबारा गया तो क्या देखता है कि श्हिम्मतसिंह जी श्रीगुरुग्रंथ साहिब का पाठ कर रहे हैं। प्रेमी हैरानी में पड़ गया, मगर आपने उसे समझा दिया कि देखा कौतक किसी से मत कहना । आप हाथ जोड़कर श्री किस्सू सिंह जी की सेवा में हाजर हो गये, आप रिद्धि-सिद्धि में गोरखनाथ से कम नहीं थे । यह वार्ता एक प्रेमी ने बताई है और दास ने दरज कर दी है। "भंवर"

मरा बालक जिन्दा किया

आपके पास बाड़े (सरकश) में घोड़े और खच्चरें हमेशा तबेले में बंधे रहते थे, जब  आप  प्रचार को जाया करते थे तो घोड़े। खच्चरों का रसाला आपके साथ साथ होता था । एक दिन आपका एक सेवक आपके घोड़े को स्नान करा के सवार हुआ वापस आ रहा था । घोड़ा मुँह जोर था आपे से बाहिर हो गया, और सरपट दौड़ता आ रहा था, आगे गली के मोड़ में लड़के खेल रहे थे। एक लड़का सुनारे का घोड़े की फेट में आकर यकदम मर गया, फौरन डाक्टर मंगाया गया मगर डाक्टर ने कहा लड़का खत्म हो चुका है। डाक्टर वापिस चला गया रोना पीटना जारी हो गया, कई कहने लगे अदालत में केस कर दो । इतने में  भाई हिम्मतसिंह जी को लड़का मर जाने. की खबर मिली दौड़ के चले गये, और बच्चे को गोदी में उठा के बैठ गये । श्री सुखमनी साहिब का पाठ शुरू किया और जब सुखमनी साहिब का भोग पड़ा, तब वह बालक आपकी गोद में उठ बैठा और पानी मांगने लगा । यह करिशमा देख के हिन्दू, मुसलमान डाक्टर हकीम चारों ओर से आपका यश गान रहे थे, उसी जगह आपके चरणों में माया के ढेर लग गये। उस बच्चे के माता-पिता आप पर लाख-लाख बार सदके जा रहे थे।

बच्चे को पूछा तू कहाँ था उसने कहा मैं एक शाही दरबार में पहुँच चुका था, अभी पेश होता ही था कि यह सन्तजी महाराज मुझे उनसे छीन कर ले आये हैं। यह सुन कर जनता वाकई आपको ब्रह्मज्ञानी सिद्ध महापुरुष कहने लगी। आपकी ख्याति तमाम देश में फैल गई, और अब तक आप को लोग श्रद्धा से आपकी तस्वीरों को पूज रहे हैं।

आपने मरे ऊँट को जिन्दा किया

कोई देहात का एक प्रेमी लंगर के लिए सामान ऊँट पर लाद कर लाया,  भाई हिम्मतसिह जी बड़े प्रसन्न हुये । उसका दिल वापस जल्दी जाने का था मगर चूँकि अब रात हो गई थी इसलिए उसे मजबूरन रहना पड़ा ।

मगर रात समय में भाई हिम्मतसिंह जी को नमस्कार करके कहने लगा महाराज ! प्रभात समय मैं चला जाऊँगा आपसे मिल नहीं सकूँगा, इसलिये मुझे जाने की आज्ञा दे दीजिये । भाई हिम्मतसिंह जी ने कहा भाई ! प्रशाद छक (खाके) जाना, हमारा तो ख़्याल है दो चार दिन हमारे पास रहो । मगर प्रेमी जिद पर तुला हुआ था और यही कहा मैं चला जाउँगा । प्रभात हुई और कचावा (काठी) ऊँट की निकाली और ऊँट पर काठी डालने को गया, मगर ऊँट मरा पड़ा था । चिल्लाता  रोता पीटता श् हिम्मतसिंहजी की तरफ भागा- आगे भाई हिम्मतसिंहजी आंगन में झाडू मार रहे थे। आते ही चरणों में गिर गया और उठता ही नहीं, भाई साहिब कहते हैं कि भाई ! कोई बात तो कहो । तब रो के कहने लगा महाराज ! मेरा ऊँट मर गया है।  भाई साहिब उसके साथ झाडू पकड़े चले जाते हैं देखा तो सचमुच ऊँट मरा पड़ा है। आप उस प्रेमी को कहते है यह मरा नहीं यह बहाना करके लम्बा पड़ा हुआ है, और कहता है एक दिन सन्तों का संग करें और यहीं रहें। भाई ! तुझसे तो ऊँट अच्छा है जो रहने के लिये बहाना बना कर लम्बा पड़ा हुआ है। प्रेमी कहता है महाराज !
अगर ऊँट खड़ा हो जावे तो आप जब भेजेंगे तब जाऊँगा।  भाई हिम्मतसिंह जी ने झाडू से ऊँट को ठकोरा और ऊँट उठ खड़ा हुआ चारा खाने लग गया ।

इस करामत की धूम पड़ गई जिस तरह श बाबा गुरदित्ता जी ने गौ जिंदा की थी, और जिस तरह नामदेव ने गौ जिंदा की थी, वैसा ही आपका यश गाया जा रहा है, अब वह प्रेमी शांत रहा दूसरे दिन रवाना हो गया ।

पुस्तक के लेखक "भंवर" ने पुस्तक में अपनी आंखों देखी बात लिखी है कि- 

मीसन गांव जिला हैदराबाद में आपका एक प्रेमी तुलसी राम बनिया था, उसका मुखालिफ कल्लू मल बनिया था, उसने तुलसी के खिलाफ अदालत में केस किया था।  बाबा हिम्मतसिंहजी ने उसको समझाया था मगर उसने कहा था, आप भी ज़ोर लगा लें में नहीं छोड़ूंगा। तुलसी के घर लड़की पैदा हुई, कल्लू ने सरे बाज़ार कहा मर्दों  के लड़के होते हैं और नमरदों के लड़कियां होती हैं। यह ताना मशहूर हो गया । तुलसी की स्त्री खेमीबाई सोहलवें दिन कुएँ पर से स्नान करके आ रही थी, इतने में  सन्त हिम्मतसिंहजी भी घोड़े पर आ निकले, खेमीबाई ने लगाम पकड़ ली और रो के - वह ताना कल्लू का सुनाया, तब आपने कहा उसके घर में मर्द (उलाद) कोई नहीं रहेगा। अब तुम्हारे लड़का आ रहा है। उसके पट (जांघ) पर मेरी मोहर होगी, ऐसा ही हुआ लड़का पैदा हुआ और उसकी जांघ पर बराबर मोहर थी । कल्लू का नाम निशान मिट गया और पुस्तक लेखक "भवर" ने पुस्तक लिखते समय यह भी जिकर किया कि तुलसीराम का बेटा शामदास आजकल टोंक में है, और परिवार वाला है। लिखारी ने उसकी टांग पर मोहर देखी लम्बे-लम्बे मोजूदद बालों की गुच्छी है।

आपकी निरपक्ष लंगर सेवा

तमाम सिंधी जनता में यह मशहूर हो गया, कि ठंडा- जाम दरबार में हर समय लंगर जारी रहता है। बिना किसी उत्सव/पक्षपात के और बगैर छूत-छात के सब को हर वक्त भोजन मिलता है, मुकामी मीर साहिब ने जब अपने कानों ऐसी तारीफ सुनी तो आश्चर्य में पड़ गया ।

अपने चित्त में विचार  करने लगा कि "हम मीरों में प्रसिद्ध मीर हैं, निवाजी में किसी से कम अभ्यागत नहीं हैं, और  महमान निवाजी में किरी से कम नहीं हैं, बल्कि पीर, फकीर, बे रोक-टोक हमारे यहां लंगर से खाना खाते हैं। क्या वजह है कि  सन्त हिम्मत सिंह जी के लंगर की तमाम सिन्ध में मशहूरी हो रही है, जिन के पास न कोई जागीर है और नाही दीगर कोई ज़रिया आमदन है, क्या कारण है ? आखर इस तारीफ और उदारता का क्या कारण है, आख़रकार मीर साहिब हाथ में किश्ती (कासा) लेकर फकीराना लबास में, आधी रात दरबार (अकाल बुंगा) में पहुँचे और भोजन की तलब ज़ाहिर की। लंगर बट  चुका था,  सन्त हिम्मतसिंह जी लंगर में गये और दो रोटियें मिलीं, वह फकीर-सांई को दी साथ ही अपने पीने बाला एक सेर दूध भी कासे में डाल दिया। और निवेदन  की सांई जी ! यह नाश्ता करो मैं और प्रशादे (रोटियें) पका लेता हूँ मगर सांई साहिब (मीर) ने कहा बाबा जी ! मेरे लिये काफ़ी खुराक है, आप पकाने की तकलीफ ना करें । सवेरे मीर साहिब दूध व रोटियें लेकर चरणों में हाज़र हुआ, तमाम नगर निवासियों को रात वाली कहानी सुनाई और सुनने वाले आप की महिमा करते आसीर नहीं होते थे ।

मीर साहिब ने लंगर के लिये जागीर देनी मन्जूर की लेकिन  सन्त हिम्मतसिंह जी ने इन्कार करते हुए फरमाया मीर साहिव ! हमारी जागीर वाहिगुरु का नाम ही है "सिरि सिरि रिजकु स्मबाहे ठाकुरु काहे मन भउ करिआ"  (गुरुबाणी)

मीर साहिब ने ज़बरदस्ती समाधों (श्मशानघाट) के लिये ज़मीन देकर बख़शीश नामा (पटा) लिख दिया था, और लंगर के लिये अपनी जागीर में से फसलाना (गुल्ला) देकर फ्राखदिली का सबूत देता रहा।

  सन्त हिम्मत सिंह जी में प्रसिद्ध नमूना औलियाई

     पुस्तक में लिखा है कि   सरदार गुरदास सिंह जी बी.ए. (सिंधी) हाल दिल्ली सुनाते हैं किं, खालसा कालज अमृतसर में मैंने 1643 ई. में बी.ए. की परीक्षा दी। मगर दिल परेशानी में था,  स्वप्न में बराबर दरवाजे तक (मेरे सिर के पीछे) एक बजुर्ग सफ़ेद वस्त्र और सफेद दाढ़े वाले खड़े हुए कहते हैं  "गुरदास सिंह मत घबराओ मैं तुम्हें बी.ए. में अवश्य  पास कराऊँगा" । सो उनके वाक्य सत्य हुए मैं पास हो गया, बाद शादी करने में टंडाजाम मात्था टेकने सहित सुपत्नी गया और  बाबा हिम्मत सिंह जी की तस्वीर देख कर पहिचान लिया कि यही सूरतें खुदा स्वप्न में मुझे धीरज देने के लिए अमृतसर आए थे, आप सुनाते हैं कि यह गद्दी करामात औलियाई से भरपूर है इस में रति मात्र शक नहीं है।

भाई हिम्मत सिंह जी का जोती-जोत समाना 

आखर कार सच्च खण्ड से बुलावा आ गया, और आप सब प्रेमियों को नज़दीक व दूर से बुलाते हैं। और अपना जोती जोत समाने के लिए पैगाम सुना रहे हैं, प्रेमी जन ऐसे योगी राज का वियोग अपनी मौत समझते थे, मगर यह जुदाई लाज़मी और अटल्ल है।

हाड़ सुदी सातवीं 16651 वि.अर्थात् 160  ई० को आप जोती जोत समा गये, प्रेमी जनों और सेवकों को सदमा देकर  जुदाई दे गये ।
नोट-कई सज्जन फागन सुदी 11  आपका जोति जोत समाना बताते हैं । " भंवर'

तमाम शहरों में तारें

कराँची, सक्खर रोड़ी, मीर पुर और हैदराबाद आदिक नगरों में तारें खड़क गई । गाड़ी मोटरों द्वारा वे अन्दाज़ खलकत आई, चंदन अतर फुलेल आदिक खुशबूदार तेल, और शाल दुशाले हज़ारों रुपये के प्रेमी लेके पहुँच गये । आप का विमान भी चन्दन ही का बनाया गया, टंडा जाम में हड़ताल हो गई ।

मीर साहिब और उनका खान्दान गमगीन हालत में पहुँच गये, तमाम मुसलमान कह रहे थे कि आज एक औलिया अल्ला बल्कि खुदा का फरिश्ता हम से जुदा हो गया । आज टंडा जाम की रौनक व शान काफूर हो गई है, यही नहीं बल्कि सिंध देश की जीनत और बाहदानिय्यत (एक रब पुजाने वाला) का सुरज गरूब हो गया है। आज टण्डाजाम ऐसा नज़र आ रहा है, जैसे उजाड़ जंगल में एक सूखा दरख़्त, हाय अफसोस ऐसी मुकद्दस हस्ती का जुदा होना हमारी बद-नसीबी व बदकिस्मती की निशानी है। तमाम मुसलमान आला खान्दान जार-ज़ार रो रहे थे, हिन्दू सिक्खों को गश पर गश आती थी हरएक अपने आप को अनाथ और वे वसीला ख़्याल करता था ।

आप की अरथी की रवानगी

आप का विमान चन्दन, (जो फूलों से सजाया हुआ था,) सेवकों ने उठा लिया पैसे, दुअन्नी, चवन्नी, अठन्नियों की प्रेमी जन वर्षा करते चले जा हैं। रुपये और पोंड भी वार-वार के फेंके जा रहे हैं, गरी छुहारे बादामों का मेंह बरस रहा है। विमान के आगे अतर, अम्बीर छिड़का जा रहा है। और रागी अन्त काल के शब्द पढ़ते कीर्तन करते जा रहे हैं । बेशुमार नर-नारी नंगे पैर अरथी के साथ आँसू बहाते जा रहे हैं, ऐसा मालूम होता है जैसे कोई बादशाह चलाना कर गया है और उसकी प्रजा विकल होकर विरलाप कर रही है।

बाम्बे मेल गाड़ी का रुकना

जब रेल की पटड़ी के पास विमान पहुँचा तो बाम्बे मेल फक-फुक करती आ गई, इसने हैदराबाद जाके खड़ा होना था। जनता भी घबरा कर पटड़ी के आर पार छलांगें लगा रही है। गोड़ी बहुत तेज रफ्तार थी क्या किया जाता था कि जनता की भीड़ बहुत है, सुमकिन है कई प्रेमी जन कुचले न जावें । मगर गाड़ी की ब्रेक एकदम रुक गई और गाड़ी खड़ी हो गई, ड्राइवर हैरान था यह क्या हुआ । आखर नीचे उतरा उस पवित्र विमान के दर्शन हुए, गाड़ी रुकने का ड्राइवर ज़िकर करता है। इसको प्रेमीजन उत्तर देते हैं कि जिनका विमान आप देख रहे हैं, यह गोरखनाथ जैसे सिद्ध ब्रह्मज्ञानी थे इनके इशारे से सूरज चाँद अपनी चाल बन्द कर देते हैं यह गाड़ी क्या चीज़ है। तमाम मुसाफिर गाड़ी और ड्राइवर व गार्ड ने अरथी को नमस्कार किया । जब विमान श्मशान में पहुँच गया यह गाड़ी आप ही चल पड़ी, और सीधी चली गई ।  

संस्कार

आखर प्रेमी जनों ने उस प्यारे महा पुरुष के शरीर को चन्दन की चिता में दाग (अग्नि) भेट कर  दिया देखते देखते शरीर भस्म हो गया वैराग्य मयी जनता इधर से ही बहुत चली गई, मगर अनन्य प्रेमी वापस अकाल बुंगा  में आये । टण्डाजाम आज मातम का घर बना हुआ है, हर एक ज़बान पर आप का ही ज़िकर है।

एक श्रुति

यह है कि भाई सावन सिंह जी जो आप के घोड़े के आगे हमेशा दौड़ा करते थे, उन्हों ने गाड़ी को इशारा किया और गाड़ी फौरन खड़ी हो गई। यह कोई असम्भव नहीं ब्रह्मज्ञानीयों के कुत्तों में शक्ति होती है सावन सिंह जी तो उनके प्यारे थे ।

भाई सावन सिंह जी का अनन्य प्रेम और ट्रेन का दुबारा चौथे रोज खड़ा होना

जब श्री पूज्य सन्त हिम्मत सिंह जी का संस्कार हो गया तो भाई सावन सिंह जी वापस टंडाजाम नहीं आये। वहीं श्मशान में चिता के पास दिन रात बैठे रहे, चिता की राख खाके सिर्फ पानी पीते थे । चौथे दिन हैदराबाद से बाम्बे मेल आई और समाधी से कुछ आगे जाकर एकदम ट्रेन खड़ी हो गई, भाई सावन सिंह रोते रोते ट्रेन की तरफ भागे । आम मुसाफिर हैरान थे कि एकदम गाड़ी खड़ी हुई और आप ही चलने लगी है। उधर सावन सिंह से आम सुसाफिर पूछते हैं, भाई रोते क्यों हो तब भाई सावन सिंह ने उत्तर दिया कि मेरे गुरु बाबा  हिम्मत सिंह जी गाड़ी पर सवार हुए हैं। मैं भी साथ जाना चाहता था मगर मेरे हाथ से थैला ले कर मुझे गाड़ी से नीचे उतार गये हैं, और आप हजूर साहिब चले गये हैं। क्या आप लोगों ने नहीं देखा ? कि  भाई हिम्मत सिंह जी के लिये गाड़ी खड़ी हुई और वह हजूर साहिब जा रहे हैं।

आप की जुदाई में घोड़े ने प्राण त्यागे

आप के शरीरान्त होने के बाद आप के घोड़े ने दाना, घास खाना छोड़ दिया, और पानी पीना त्याग दिया । चौथे रोज़ वैराग्य में रो-रो कर घोड़े ने भी प्राण त्याग दिये और उस घोड़े की पवित्र रूह अपने प्रीतम से जा मिली, आपको पता होगा इतिहास कि कबूतरों का जोड़ा महाराजा रणजीत सिंह जी की बलती चिता में दाखल हो गया था, देखो पशु और पक्षी भी अपने प्यारों से प्राण न्यौछावर कर देते हैं। प्रेम रहित  इन्सान इन पशुओं, पक्षियों से भी बहुत बुरे हैं, "जिन प्रेम कियो तिन्ही प्रभु पायो" । (गुरुबाणी)

पाठ

श्री गुरु ग्रंथ साहिब का पाठ रखा गया है, और चौथे रोज़ अस्थियें और खाक वहाँ ही गागर में बन्द करके समाधि तय्यार हो गई है।

बारहवें रोज

श्री गरु ग्रन्थ साहिब का भोग पड़ा और दस्तार बंदी की तय्यारी की गई ।

दस्तार बंदी श्री भाई फूला सिंह की होनी निश्चित हुई

क्योंकि आप पढ़ चुके हैं कि यह भाई ठाकर सिंह जी के चेले थे (जो पहिले ही चढ़ाई कर गये थे) मगर  भाई फूला सिंह जी ने कहा कि  नन्दा सिंह जी के चेले भाई जय सिंह जी मेरे चच्चा की दस्तार बंदी होनी चाहिये । ऐसा ही हुआ बड़ी धूम धाम से  भाई जय सिंह जी को दस्तार बांध कर गादीनशीन किया गया, श्री भाई जय सिंह जी 1606  ई० में  नौवें  गादीनशीन महन्त हुए ।

"सन्त हीरे" नामक पुस्तक के अनुसार गद्दीनशीन महन्त सन्त बाबा हिम्मत सिंह साहिब बाल्यकाल से ही वाकसिध्दी महापुरुष दे, उनकी सेवा और वाक सिध्दी से सभी प्रभावित थे, यही कारण है कि सिन्धी समाज अजमेर भी बड़ी उत्साह और जोर शोर से बाबा हिम्मत सिंह साहिब का जन्म दिन = जोड़ मेला अपनी परम्परागत सांस्कृतिक से नाचगान, भगत भजन, कीर्तिन राही मनाना पंसद करती है और महन्त सन्त बाबा सुखदेव सिंह साहिब जी इन श्रध्दालुओं की भावनाओं को जागृत रखते हुए साहिब श्री गुरुग्रन्थ साहिब जा महाराज का पूर्ण अदर सत्कार करते हुए दरबार साहिब परिसर से बाहर दरबार साहिब के पास ही सिन्धी कम्युनिस्टी हाल में सिन्धी  भक्तजनों की कीर्तन, भजन का आयोजन किया।

(विशेष: वास्तव में गुरुमर्यादानुसार गुरुघर में गुरुजनों  ने चमत्कार करने/दिखाने पर मनाही है और अकाल पुरख परमात्मा की रजा में रहने का हुक्म है। हम सभी इस गुरुघर की मर्यादित निती का पालन करते हैं, फिर भी सेवा सिमरन से सन्त महात्माओं, ब्रह्मज्ञानियों की जिव्हा पर प्रभु परमात्म का वास हो जाता है, उनका कहा सत्य हो जाता है गुरुबाणी कहती है :

 प्रभ जी बसहि साध की रसना ॥

पूजनीय प्रभु अपने संत पुरुषों की रसना में निवास करते हैं।




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जय झूलेलाल 


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सन्त बाबा सीतलसिंह जी महू वालों एवं महन्त सन्त बाबा सुखदेव सिंह जी की कृपा सदके आपनी सेवा आप कराई 🙏


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ढेरा संत बाबा हिम्मत सिंह साहिब जी के वर्तमान 

गद्दीनशीन महन्त सन्त बाबा सुखदेव सिंह साहिब जी  

की

ओर से आप  सभी साध संगत जी को

वाहेगुरु जी का खालसा वाहेगुरु जी की फतह  प्रवान हो 🙏

सम्पर्क: 

महन्त सन्त सुखदेव सिंह जी 

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